उत्तराखंड में मनाए जाने वाले हर एक त्यौहार का अपने आप में बहुत महत्व है। यहां ऋतुओं के अनुसार अलग अलग त्यौहार मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक खास त्योहार है हरेला। जी हां, यह त्योहार हरियाली से संबंधित है और बड़ी धूमधाम से इसे हर जगह मनाया जाता है। इस दौरान हरेला पूजते समय एक खास गीत भी गाया जाता है।
यह है हरेला का महत्व, इस खास वजह से मनाया जाता है यह त्योहार
हरेला का क्या महत्व है, इसे जानने से पहले यह जानना जरूरी हो जाता है कि, किस कारण से यह मनाया जाता है। जैसा कि हमने आपसे शुरुआत में कहा, यह हरियाली से संबंधित त्यौहार है। दरअसल कृषि में संब्रद्धि के लिए यह मनाया जाता है। कहा जाता है कि, हरेला जितना बड़ा होता है, फसलें भी उतनी अच्छी होती है, यानी चारों तरफ हरियाली छाए रहती है। यही हरेला का महत्व है।
साल में तीन बार होता है यह त्योहार, लेकिन श्रावण मास का हरेला है खास
यह एक ऐसा त्योहार है, जो साल में तीन बार मनाया जाता है। यह चैत्र मास में मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त श्रावण मास और आश्विन मास में भी यह मनाया जाता है, पर श्रावण मास में मनाया जाने वाला हरेला अपने आप में खास है। श्रावण मास, जैसा कि शिव जी को समर्पित है,इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके लिए 9 दिन पहले टोकरी में पांच या सात प्रकार के अनाज उगाए जाते हैं। इसके बाद प्रतिदिन इसे सींचा जाता है और इस बात का खास ध्यान यह रखा जाता है कि, सूर्य की रोशनी से इसे बचाया जा सके।
इस दिन काटा जाता है हरेला, गाया जाता है यह खास गीत h
9 दिन तक हरेले को बोया जाता है। इसके पश्चात यानी दसवें दिन घर के बुजुर्ग द्वारा हरेला काटा जाता है। पूजा पाठ के साथ यह काटा जाता है। पहले इसे देवताओं को चढ़ाया जाता है, फिर घर के सभी सदस्यों को हरेले के साथ पूजा जाता है। इस दौरान एक खास गीत भी पूजते वक्त गाया जाता है। घर-घर में पकवान भी इस दिन में बनाए जाते हैं।
यह है हरेला पूजते समय गाया जाने वाला गाना
जी रया ,जागि रया,
यो दिन बार, भेटने रया,
दुबक जस जड़ हैजो,
पात जस पौल हैजो,
स्यालक जस त्राण हैजो,
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
हरेला त्यार मानते रया,
जी रया जागी रया.
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